मेरा बॉयफ्रेंड
(छठी कक्षा के नैतिक शिक्षा पाट्यक्रम के लिए प्रस्तावित निबंध)
मेरा बॉयफ्रेंड एक दोपाया लड़का इंसान है
उसके दो हाथ, दो पैर और एक पूंछ है
(नोट- पूंछ सिर्फ मुझे दिखती है)
मेरे बॉयफ्रेंड का नाम हनी है
घर में बबलू और किताब-कॉपी पर उमाशंकर
उसका नाम बेबी, शोना और डार्लिंग भी है
मैं अपने बॉयफ्रेंड को बाबू बोलती हूं
बाबू भी मुझे बाबू बोलता है
बाबू के बालों में डैंड्रफ है
बाबू चप चप खाता है
घट घट पानी पीता है
चिढ़ाने पर 440 वोल्ट के झटके मारता है
उसकी बांहों में दो आधे कटे नीबू बने हैं
जिसमें उंगली भोंकने पर वो चीखता है
मेरा बाबू रोता भी है
हिटिक हिटिक कर
और आंखें बंद कर के हंसता है
उसे नमकीन खाना भौत पसंद है
वो सोते वक्त नाक मुंह दोनों से खर्राटे लेता है
मैं एक अच्छी गर्लफ्रेंड हूं
मैं उसके मुंह में घुस रही मक्खियां भगा देती हूं
मैंने उसके पेट पर मच्छर भी मारा है
मुझे उसे देख कर हमेशा हंसी आती है
उसके गाल बहुत अच्छे हैं
खींचने पर 5 सेंटीमीटर फैल जाते हैं
उसने मुझे एक बिल्लू नाम का टेडी दिया है
हम दुनिया के बेस्ट कपल हैं
हमारी एनिवर्सरी 15 मई को होती है
आप हमें विश करना
*मेरा बॉयफ्रेंड से ये शिक्षा मिलती है कि बॉयफ्रेंड के पेट पर मच्छर मारना चाहिए और उसके मुंह से मक्खी भगानी चाहिए ।
मेरे हॉस्टल के सफाई कर्मचारी ने सेनिटरी नैपकिन फेंकने से इनकार कर दिया है
ये कोई नई बात नहीं
लंबी परंपरा है
मासिक चक्र से घृणा करने की
'अपवित्रता' की इस लक्ष्मण रेखा में
कैद है आधी आबादी
अक्सर
रहस्य-सा खड़ा करते हुए सेनिटरी नैपकिन के विज्ञापन
दुविधा में डाल देते हैं संस्कारों को . . .
झेंपती हुई टेढ़ी मुस्कराहटों के साथ खरीदा बेचा जाता है इन्हें
और इस्तेमाल के बाद
संसार की सबसे घृणित वस्तु बन जाती हैं
सेनिटरी नैपकिन ही नहीं, उनकी समानधर्माएँ भी
पुराने कपड़ों के टुकड़े
आँचल का कोर
दुपट्टे का टुकड़ा
रास्ते में पड़े हों तो
मुस्करा उठते हैं लड़के
झेंप जाती हैं लड़कियाँ
हमारी इन बहिष्कृत दोस्तों को
घर का कूड़ेदान भी नसीब नहीं
अभिशप्त हैं वे सबकी नजरों से दूर
निर्वासित होने को
अगर कभी आ जाती हैं सामने
तो ऐसे घूरा जाता है
जिसकी तीव्रता नापने का यंत्र अब तक नहीं बना . . .
इनका कसूर शायद ये है
कि सोख लेती हैं चुपचाप
एक नष्ट हो चुके गर्भ बीज को
या फिर ये कि
मासिक धर्म की स्तुति में
पूर्वजों ने श्लोक नहीं बनाए
वीर्य की प्रशस्ति की तरह
मुझे पता है ये बेहद कमजोर कविता है
मासिक चक्र से गुजरती औरत की तरह
पर क्या करूँ
मुझे समझ नहीं आता कि
वीर्य को धारण करनेवाले अंतर्वस्त्र
क्यों शान से अलगनी पर जगह पाते हैं
धुलते ही 'पवित्र' हो जाते हैं
और किसी गुमनाम कोने में
फेंक दिए जाते हैं
उस खून से सने कपड़े
जो बेहद पीड़ा, तनाव और कष्ट के साथ
किसी योनि से बाहर आया है
मेरे हॉस्टल के सफाई कर्मचारी ने सेनिटरी नैपकिन
फेंकने से कर दिया है इनकार
बौद्धिक बहस चल रही है
कि अखबार में अच्छी तरह लपेटा जाए उन्हें
ढँका जाए ताकि दिखे नहीं जरा भी उनकी सूरत
करीने से डाला जाए कूड़ेदान में
न कि छोड़ दिया जाए
'जहाँ तहाँ' अनावृत . . .
पता नहीं क्यों
मुझे सुनाई नहीं दे रहा
उस सफाई कर्मचारी का इनकार
गूँज रहे हैं कानों में वीर्य की स्तुति में लिखे श्लोक . . .
सिर्फ तुम्हारे लिए . . . सिमोन
(1)
तुमने मुझे क्या बना दिया, सिमोन ?
सधे कदमों से चल रही थी मैं
उस रास्ते पर
जहाँ
जल-फूल चढ़ाने लायक
'पवित्रता'
मेरे इंतजार में थी
ठीक नहीं किया तुमने . . .
ऐन बीच रस्ते धक्का दे कर
गलीज भाषा में इस्तमाल होने के लिए
बोलो ना सिमोन, क्यों किया तुमने ऐसा ?
(2)
'तुम
मेरे भीतर शब्द बन कर
बह रहे हो
तिर रहा है प्यास-सा एहसास
बज रही है
एक कोई ख़ूबसूरत धुन'
काश ऐसी कविता लिख पाती
तुमसे मिलने के बाद
मैंने तो लिखा है
सिर्फ
सिमोन का नाम
पूरे पन्ने पर
आड़े तिरछे
(3)
मुझे पता है
तुम देरिदा से बात शुरू करोगे
अचानक वर्जीनिया कौंधेगी दिमाग में
बर्ट्रेंड रसेल को कोट करते करते
वात्स्यायन की व्याख्याएँ करोगे
महिला आरक्षण की बहस से
मेरी आजादी तक
दर्जन भर सिगरेटें होंगी राख
तुम्हारी जाति से घृणा करते हुए भी
तुमसे मैं प्यार करूँगी
मुझे पता है
बराबरी के अधिकार का मतलब
नौकरी, आरक्षण या सत्ता नहीं है
बिस्तर पर होना है
मेरा जीवंत शरीर
जानती हूँ . . .
कुछ अंतरंग पल चाहिए
'सचमुच आधुनिक' होने की मुहर लगवाने के लिए
एक 'एलीट' और 'इंटेलेक्चुअल' सेक्स के बाद
जब मैं सोचूँगी
मैं आजाद हूँ
सचमुच आधुनिक भी . . .
तब
मुझे पता है
तुम एक ही शब्द सोचोगे
'चरित्रहीन'
(4)
जानती हो सिमोन,
मैं अकसर सोचती हूँ
सोचती क्या, चाहती हूँ
पहुँचाऊँ
कुछ प्रतियाँ 'द सेकंड सेक्स' की
उन तक नहीं
जो अपना ब्लॉग अपडेट कर रही हैं
मीटिंग की जल्दी में हैं
बहस में मशगूल हैं
'सोचनेवाली औरतों' तक नहीं
उन तक
जो एक अदद दूल्हा खरीदे जाने के इंतजार में
बैठी हैं
कई साल हो आए जिन्हें
अपनी उम्र उन्नीस बताते हुए
चाहती हूँ
किसी दिन कढ़ाई करते
क्रोशिया चलते, सीरियल देखते
चुपके से थमा दूँ एक प्रति
छठे वेतन आयोग के बाद
महँगे हो गए हैं लड़के
पूरा नहीं पड़ेगा लोन
प्रार्थना कर रही हैं वे
सोलह सोमवार
पाँच मंगलवार सात शनिवार
निर्जल . . . निराहार . . .
चाहती हूँ
वे पढ़ें
बृहस्पति व्रत कथा के बदले
तुम्हें, तुम्हारे शब्दों को
जानती हो
डर लगता है
पता नहीं
जब तक वे खाना बनाने
सिलाई करने, साड़ियों पर फूल बनाने के बीच
वक्त निकालें
तब तक
संयोग से कहीं सौदा पट जाए
और
तीस साल की उम्र में
इक्कीस वर्षीय आयुष्मती कुमारी क
परिणय सूत्र में बँधने के बाद
'द सेकंड सेक्स' के पन्नों में
लपेट कर रखने लगें अपनी चूड़ियाँ
तब क्या होगा, सिमोन ?
तीन कविताएँ
शुभम श्री
Shubham Shree is a young Hindi poet who is fast becoming known for her biting sense of humor and revolutionary spirit. Shree's poem “Poetry Management” caused a storm of controversy when it was awarded the Bharat Bhushan Agrawal Prize in 2016. The prize is awarded to a single poem by a young poet yet to publish a collection or book. In the poem, Shree imagines a world in which poetry is the most important currency of political power, and a master's in “poetry management” is the most sought after graduate degree. The controversy stemmed from her bold use of slang and English words, considered a desecration of the tradition of Hindi poetry. In the three poems presented here, we see more of Shree's characteristic spirit: her lament regarding the refusal of hostel cleaners to remove used sanitary napkins from the trash caused a stir when it was first published, and unleashed a torrent of misogynist commentary. Her humor shines through in “My Boyfriend,” in which she describes a sweet and idiosyncratic romance in the face of demands for morality education (think abstinence education) for teens. In “Just for you, Simone,” she explores how reading Simone de Beauvoir's The Second Sex can “ruin” young women for traditional roles as submissive wives and mothers.
Shubham Shree was born in 1991 and lives in Delhi, India. Her controversial poem “Poetry Management” was awarded the prestigious Bharat Bhushan Agrawal Prize in 2016.
Daisy Rockwell is a painter, translator, and writer who lives in the US. She has published many translations from Hindi, including Bhisham Sahni's Tamas and Upendranath Ashk's Falling Walls (both from Penguin India).