पीठ कोरे पिता श्रृंखला से
पीयूष दईया
१.
मुझे थूक की तरह छोड़कर चले गए
पिता, घर जाते हो?
गति होगी
जहाँ तक वहीँ तक तो जा सकोगे
— ऐसा सुनता रहा हूँ
जलाया जाते हुए
अपने को
क्या सुन रहे थे?
आत्मा
शव को जला दो
वह लौटकर नहीं आयेगा
६.
मंज़र
शायद विस्मृति की त्रुटी है
जो मैं बहार आ गया हूँ
अस्पताल से
अपनी सांस जैसा असली
पिता खोकर
अजब तरह के आश्चर्य में
वैश्या जानती है जिसे
इंसान जीवित के साथ सोता है
मुर्दे के साथ नहीं
७.
वह क्या है जिसे छिपा नहीं सके
अब प्रकट है जो
— एक लाश —
वियोग उपहार
जिसे हिन्दू गलने से रोक लेते हैं
ले आते राख में
क्या इति का नकाब है?
अपनी ही पदचापों से बने
रास्ते पर
कौनसा शब्द है जो जीने में आ सके
लाश —
९.
जो नहीं है वह
जीने के लिए एक जगह बन जाती है
जहाँ वाणी शब्द नहीं देती
कलपती
हर सांस में
हमें
१०.
जानता था मैं एक दिन
रोक नहीं सकूँगा और
गूंगी चीख से सना रह जाऊंगा
सदा के लिए
— मर जाओगे
फूल-सा —
मासूम दिल लिए अपना
एक दिन
जानता था मैं
दिल से
मर जायेंगे आप
११.
असीम आकाश में सफ़ेद पड़ गए
सारे साल पहले के
जाते ही उनके
तिरोहित
खामोशी
जला आऊंगा
फिर कभी न मिलने के लिए
१३.
और आपने जाना सब
पीठ कर लेते हैं छूटते
ही सांस
लाश
जला देने के लिए
आप
१८.
सब ख़त्म
में
कोई कब तक जी सकता है?
कब तक
बगैर शब्दों के बोलना है एक भाषा में
जो मेरे पीछे पड़ी है
विफल
करती मुझे
बारम्बार
सुन लेगी जिसे
वह ख़ामोशी होगी
मैं नहीं, पिता
२०.
ओखली में सर देकर यूं लौट
आया हूँ
जैसे चिता में पिता
वक़्त. रक्त की तरह बह रहा है
माँ
आकाश से एक तारा तोड़कर
अपनी आँखों में चमका लो
या माथे पर पोंछ दो
सिन्दूर
२३.
देखते ऊपर
अधरात
इतना अकेला यह घर
खंडहर हो जायेगा
चुप होते हुए
विरह में
मुझे थूक की तरह छोड़कर चले गए
पिता, घर जाते हो?
गति होगी
जहाँ तक वहीँ तक तो जा सकोगे
— ऐसा सुनता रहा हूँ
जलाया जाते हुए
अपने को
क्या सुन रहे थे?
आत्मा
शव को जला दो
वह लौटकर नहीं आयेगा
६.
मंज़र
शायद विस्मृति की त्रुटी है
जो मैं बहार आ गया हूँ
अस्पताल से
अपनी सांस जैसा असली
पिता खोकर
अजब तरह के आश्चर्य में
वैश्या जानती है जिसे
इंसान जीवित के साथ सोता है
मुर्दे के साथ नहीं
७.
वह क्या है जिसे छिपा नहीं सके
अब प्रकट है जो
— एक लाश —
वियोग उपहार
जिसे हिन्दू गलने से रोक लेते हैं
ले आते राख में
क्या इति का नकाब है?
अपनी ही पदचापों से बने
रास्ते पर
कौनसा शब्द है जो जीने में आ सके
लाश —
९.
जो नहीं है वह
जीने के लिए एक जगह बन जाती है
जहाँ वाणी शब्द नहीं देती
कलपती
हर सांस में
हमें
१०.
जानता था मैं एक दिन
रोक नहीं सकूँगा और
गूंगी चीख से सना रह जाऊंगा
सदा के लिए
— मर जाओगे
फूल-सा —
मासूम दिल लिए अपना
एक दिन
जानता था मैं
दिल से
मर जायेंगे आप
११.
असीम आकाश में सफ़ेद पड़ गए
सारे साल पहले के
जाते ही उनके
तिरोहित
खामोशी
जला आऊंगा
फिर कभी न मिलने के लिए
१३.
और आपने जाना सब
पीठ कर लेते हैं छूटते
ही सांस
लाश
जला देने के लिए
आप
१८.
सब ख़त्म
में
कोई कब तक जी सकता है?
कब तक
बगैर शब्दों के बोलना है एक भाषा में
जो मेरे पीछे पड़ी है
विफल
करती मुझे
बारम्बार
सुन लेगी जिसे
वह ख़ामोशी होगी
मैं नहीं, पिता
२०.
ओखली में सर देकर यूं लौट
आया हूँ
जैसे चिता में पिता
वक़्त. रक्त की तरह बह रहा है
माँ
आकाश से एक तारा तोड़कर
अपनी आँखों में चमका लो
या माथे पर पोंछ दो
सिन्दूर
२३.
देखते ऊपर
अधरात
इतना अकेला यह घर
खंडहर हो जायेगा
चुप होते हुए
विरह में