डमरा फाग बहार से
लालबिहारी शर्मा
चौताल १
सखी फूले बसन्तके फूल बिरह तनु जारे ।।
चम्पा फुले गुलाब फुले सुरुजमुखी कचनारे ।।
उड़हुल बेलि चमेलि फुलानेहो,
सर कमल फुले रतनारे ।।१।।
जुही मालती कंदइल दाड़िम गोंदा फुले हजारे ।।
लाल अनार कुसुमकलियनहो सखी सिरीस फुले अतिबारे ।।२।।
बाग पियाबिन फूल फुलाने मारत जान हमारे ।।
जो पीया होत हमारे संगमेंहो,
सखि करत बिथा सब न्यारे ।।३।।
कोइल सब्द करत बगियामें सुनि सुनि फटत दरारे ।।
लालबिहारी कहत समुझाइ हो,
गोरी तुमरो बलम अतिबारे ।।४।।
चौताल २
पपीहा बन बैन सुनावे निंद नहीं आवे ।।
आधीरात भई जब सखिया कामबिरह सन्तावे ।।
पियबिन चैन मनहि नहिं आवत,
सखि जोबन जोर जनावे ।।१।।
फागुन मस्त महीना सजनी पियबिन मोहिं न भावे ।।
पवन झकोरत लुह जनु लागत,
गोरी बैठी तहां पछितावे ।।२।।
सब सखि मिलकर फाग रचतहैं । ढोल मृदंग बजावे ।।
हाथ अबीर कनक पिचकारी हो,
सखि देखत मन दुख पावे ।।३।।
हे बिधना मैं काहबिगाड़ो जनम अकारथ जावे ।।
लालबिहारी कहत समुझाइ हो,
गोरी धीरजमें सुख पावे ।।४।।
चौताल ३
सखि उठिकर करहु सिंगार बसन्त जाये ।।
बाजुबन्द कंगन भल सोहे अँगुरिन नेपुर भाय ।।
पहिरि बिजायठ हार जो सोहत,
सिर बेन्दी मन लाये ।।१।।
करि सिंगार पलंगपर बैठी पिया पिया गोहराय ।।
मैं बिरहिनि पिया बात न पूछत,
तब जोबन जोर जनाय ।।२।।
चोलिया मसके बन्द सब टूटे अंग अंग थहराय ।।
कामके बिरह सहा नहीं जातहो,
गोरी सोचनमें तन छाय ।।३।।
पियपिय बोल पपिहरा बोलत सुनि सुनि धीर न आये ।।
लालबिहारी धीर धरावत,
गोरी धीर धरो मन माय ।।४।।
चौताल ४
पीयवा परदेसमें छाये सन्देस न आाये ।।
सुन्दर मास फगुनवा सजनी पियबिन मोहिं न भाये ।।
पियपिय बोल पपिहरा बोलत,
सुनि कामबिरह तनु छाये ।।१।।
बारे सैयां परदेस निकलगये नहिं कुछ खबर जनाये ।।
नाग वो बाण बरस अब गुजरेहो,
मन अधिक उठत घबड़ाये ।।२।।
छाड़ि जनाना घर मरदाना पीयकर खोज कराये ।।
धीर धरों जिय धीर न आवत,
तहं योबन जोर जनाये ।।३।।
निसिदिन बैठी पिया दिस देखत अबहुं पिया नहीं आये ।।
लालबिहारी बिरह बस कामिनि,
पिय आइके बिरह छोरड़ाये ।।४।।
चौताल ५
सखि आये बसंत बहार पिया नहिं आये ।।
फागुन मस्त महीना सखिया मोर जिया ललचाये ।।
सब नर नारी जो पागुन गावत,
सखि मोकहं सूम बढ़ाये ।।१।।
ताल मृदंग झांझ डफ बाजे सबको मन हरषाये ।।
मैं बिरहिनि सेजियापर बिलखति,
मोहिं अजु मदन तनु छाये ।।२।।
भरभरके पिचकारी मारत नात गोत बिलगाये ।।
सखि सब घर घर धूम मचावत,
तहां रंग अबिरन छाये ।।३।।
गोरी देत सभीको सबही ना कोइ काहु लजाये।।
लालबिहारी विरहबस बनिताहो,
सोतो बैठे मनहि सुझाये ।।४।।
सखी फूले बसन्तके फूल बिरह तनु जारे ।।
चम्पा फुले गुलाब फुले सुरुजमुखी कचनारे ।।
उड़हुल बेलि चमेलि फुलानेहो,
सर कमल फुले रतनारे ।।१।।
जुही मालती कंदइल दाड़िम गोंदा फुले हजारे ।।
लाल अनार कुसुमकलियनहो सखी सिरीस फुले अतिबारे ।।२।।
बाग पियाबिन फूल फुलाने मारत जान हमारे ।।
जो पीया होत हमारे संगमेंहो,
सखि करत बिथा सब न्यारे ।।३।।
कोइल सब्द करत बगियामें सुनि सुनि फटत दरारे ।।
लालबिहारी कहत समुझाइ हो,
गोरी तुमरो बलम अतिबारे ।।४।।
चौताल २
पपीहा बन बैन सुनावे निंद नहीं आवे ।।
आधीरात भई जब सखिया कामबिरह सन्तावे ।।
पियबिन चैन मनहि नहिं आवत,
सखि जोबन जोर जनावे ।।१।।
फागुन मस्त महीना सजनी पियबिन मोहिं न भावे ।।
पवन झकोरत लुह जनु लागत,
गोरी बैठी तहां पछितावे ।।२।।
सब सखि मिलकर फाग रचतहैं । ढोल मृदंग बजावे ।।
हाथ अबीर कनक पिचकारी हो,
सखि देखत मन दुख पावे ।।३।।
हे बिधना मैं काहबिगाड़ो जनम अकारथ जावे ।।
लालबिहारी कहत समुझाइ हो,
गोरी धीरजमें सुख पावे ।।४।।
चौताल ३
सखि उठिकर करहु सिंगार बसन्त जाये ।।
बाजुबन्द कंगन भल सोहे अँगुरिन नेपुर भाय ।।
पहिरि बिजायठ हार जो सोहत,
सिर बेन्दी मन लाये ।।१।।
करि सिंगार पलंगपर बैठी पिया पिया गोहराय ।।
मैं बिरहिनि पिया बात न पूछत,
तब जोबन जोर जनाय ।।२।।
चोलिया मसके बन्द सब टूटे अंग अंग थहराय ।।
कामके बिरह सहा नहीं जातहो,
गोरी सोचनमें तन छाय ।।३।।
पियपिय बोल पपिहरा बोलत सुनि सुनि धीर न आये ।।
लालबिहारी धीर धरावत,
गोरी धीर धरो मन माय ।।४।।
चौताल ४
पीयवा परदेसमें छाये सन्देस न आाये ।।
सुन्दर मास फगुनवा सजनी पियबिन मोहिं न भाये ।।
पियपिय बोल पपिहरा बोलत,
सुनि कामबिरह तनु छाये ।।१।।
बारे सैयां परदेस निकलगये नहिं कुछ खबर जनाये ।।
नाग वो बाण बरस अब गुजरेहो,
मन अधिक उठत घबड़ाये ।।२।।
छाड़ि जनाना घर मरदाना पीयकर खोज कराये ।।
धीर धरों जिय धीर न आवत,
तहं योबन जोर जनाये ।।३।।
निसिदिन बैठी पिया दिस देखत अबहुं पिया नहीं आये ।।
लालबिहारी बिरह बस कामिनि,
पिय आइके बिरह छोरड़ाये ।।४।।
चौताल ५
सखि आये बसंत बहार पिया नहिं आये ।।
फागुन मस्त महीना सखिया मोर जिया ललचाये ।।
सब नर नारी जो पागुन गावत,
सखि मोकहं सूम बढ़ाये ।।१।।
ताल मृदंग झांझ डफ बाजे सबको मन हरषाये ।।
मैं बिरहिनि सेजियापर बिलखति,
मोहिं अजु मदन तनु छाये ।।२।।
भरभरके पिचकारी मारत नात गोत बिलगाये ।।
सखि सब घर घर धूम मचावत,
तहां रंग अबिरन छाये ।।३।।
गोरी देत सभीको सबही ना कोइ काहु लजाये।।
लालबिहारी विरहबस बनिताहो,
सोतो बैठे मनहि सुझाये ।।४।।
Recording credits: Amar Ramessar (vocals), Tarun Deodat (tabla), and Avinash Roopchan (keyboard and sound engineering).